प्यार बसता है कभी, फूल में खुशबू बनकर
याद जगती है कभी, रात में जुगनू बनकर
काँटों से भरी ज़िंदगी में ग़म की क्या परवाह करें
जिगर का खून है, बहता है जो आँसू बनकर
वो इक लम्हा जो तेरे साथ बिताया था कभी
दिल मे बजता है, तेरी याद का घुँघरू बनकर
तू ही ना जब मिली तो दुनिया का क्या करें
निकल जाएँगे कहीं राह में साधु बनकर
कैसे जीता है कोई दर्द-ए-मोहब्बत के बिना
हम भी देखेंगे कभी ख्वाब में "तू" बनकर
दर्द को उसके, कैसे मैं भुला दूं "सागर"
दिल में बहता है वही दर्द जब लहू बनकर
Hi smarty
ReplyDeletevery nice shayari.
shayar kab se ban gaye.
Awesome!
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